Wednesday, October 5, 2011

झूठे ही सही दो आँसू ढलका देना



दिल तुम्हें दे दिया
सुकून तुम्हें दे दिया
ख़्वाबों में सिर्फ तुम्हें

देखा
ख्यालों में तुम्हें रखा
इंतज़ार तुम्हारा
निरंतर करता रहा
मेरी नज्मों के हर
लफ्ज़ को
तेरे नाम कर दिया
अब और क्या तोहफा
बचा तुम्हें देने के लिए
क्यों फिर
इतना तडपाते हो ?
बेदर्दी से ठुकराते हो
मन फिर भी नहीं भरा
तो जान भी दे दूंगा
एक वादा ज़रूर लूंगा
मेरे मरने के बाद
दुनिया को दिखाने

के लिए
मेरी कब्र पर

दो फूल चढ़ा देना
झूठे ही सही दो आँसू
ढलका देना
मेरी रूह को सुकून
दे देना

05-10-2011
1615-23-10-11

No comments: