सारे मौसम देख लिए
किस मौसम का अब
इंतज़ार करूँ
बहारों को
खिजा में बदलते देखा
महकते फूलों को
मुरझाते देखा
अरमानों को निरंतर
टूटते देखा
हसरतें दम तोड़ चुकी
देखने की तमन्ना
बची नहीं
अब और सहने की
ताकत भी नहीं
सारे मौसम देख लिए
किस मौसम का अब
इंतज़ार करूँ
इंतज़ार करूँ
20-10-2011
1680-87-10-11
No comments:
Post a Comment