एक चेहरा
हुबहू तुम्हारे जैसा
निरंतर
यादों में समाता था
खवाबों को बसाए
रखता
तन्हाईओं में रोने
नहीं देता
ज़िन्दगी के सूरज को
अस्त नहीं होने देता था
तुम को देखा जब से
अब वो चेहरा
हैरान नहीं करता
शाम का सूरज
अब सवेरे का दिखता
मुझे तनहा नहीं
रखता
अब तुम्हारा चेहरा
मेरी आँखों के
सामने रहता
16-10-2011
1663-71-10-11
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