दिल की
दिल में रखते हैं
कुछ ना
किसी से कहते हैं
खामोशी से सहते हैं
मन में हँसते हैं
मन में रोते हैं
निरंतर खुद को
मशगूल रखते हैं
कोई अपना सा
मिल जाए
कुछ गुफ्तगू हो
जाए
दिल बहल जाए
दो पल हँस लें
कुछ लम्हों के लिए
ही सही
ग़मों को भूल जाएँ
अंधेरी ज़िन्दगी में
थोड़ी सी
चमक आ जाए
कोशिश में लगे
रहते हैं
19-10-2011
1674-82-10-11
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