Friday, August 2, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: मेरा वतन लुट रहा है,मेरा चमन लुट रहा है

"निरंतर" की कलम से.....: मेरा वतन लुट रहा है,मेरा चमन लुट रहा है: मेरा वतन लुट रहा है मेरा चमन लुट रहा है हर दिन सियासत का नया खेल हो रहा है मोहब्बत के पौधों को उखाड़ा जा रहा है नफरत के काँट...

No comments: