Wednesday, April 3, 2013

हास्य कविता-हास्य कवी हँसमुखजी



हँसमुखजी अपने को
हास्य कवी समझते थे
घमंड में जीते थे
लोग कविताओं पर कम
उनकी शक्ल सूरत पर
अधिक हँसते थे
लोगों को हँसते देख
हँसमुखजी घमंड की
एक सीढ़ी और चढ़ जाते थे
लोगों भी ज्यादा
 ठहाके लगाने लगते थे
एक दिन उनके सर पर
घड़ों पानी पड़ गया
जब उनकी कविताओं से
पीडित
एक श्रोता से रहा नहीं गया
उनसे कह दिया
हँसमुखजी आपकी
कवितायें  बहुत मार्मिक होती हैं
अगर आपकी शक्ल सूरत
अजीब नहीं होती
तो किसी को बाल भर भी
हँसी नहीं आती
रोते रोते जान ही निकल जाती
कवितायें हकीकत बन जाती
07-63-03-02-2013
हास्य ,हास्य कविता,हँसी,हास्य व्यंग्य
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

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