Tuesday, March 5, 2013

कहीं ऐसा ना हो


तुम्हारा ख़त मिला
उसमें लिखा
तुम्हारा पैगाम मिला
घर वाले हमारी नियत पर
शक करते हैं
इसलिए अब हमसे
बात नहीं कर पाओगी
घर में फजीहत नहीं
करवाओगी
कभी ये भी सोचा तुमने
घर वाले तो तुम पर भी
यकीन नहीं करते
गर यकीन होता
तो हमारी नियत पर
सवाल ही नहीं उठाते
मिलो ना मिलो हमसे
हम नहीं चाहते
तुम्हारा घर बिगड़े
हम तुम्हें चाहते रहेंगे
पाक रिश्ते को
दिल में बनाए रखेंगे
बस घबराते हैं
आज मैं हूँ
कल कोई और होगा
कब तक वफ़ा का
इम्तहान देते रहोगे
शक से देखे जाते रहोगे
डरता हूँ
कहीं ऐसा ना हो
थक कर तुम ही कोई
नया साथ ना ढूंढ लो
घर टूटने का इलज़ाम
तुम्हारे चाहने वालों
पर लग जाए
क़त्ल करे बिना ही
उन्हें कातिल करार
दे दिया जाए
10-10-04-01-2013
शक,रिश्ता,विश्वास,
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

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