Friday, March 15, 2013

विचारों से द्वंद्व करते करते



विचारों से
द्वंद्व करते करते
नींद की गोद में समाया ही था
खिड़की पर आहट ने
आधी नींद से जगा दिया
खिड़की खोलते ही हवा का
झोंका कमरे में आया
हवा से नींद भंग करने का
कारण पूछा
हवा मुस्काराते हुए बोली
बर्फीले पहाड़ों से होते हुए
गर्म रेगिस्तान में झुलसते हुए
नदी के बहते पानी को छूते हुए
वृक्षों के हरे भरे पत्तों के
बीच से छनते  हुए
महकते फूलों को चूमते हुए
तुम्हें बंद दरवाजों के
अँधेरे कमरे से
छुटकारा दिलाने आयी हूँ
आओ उठ खड़े हो जाओ
मेरे साथ चलो
प्रकृति का आनंद लो
व्यथा को कम करो
मेरे जैसे ही निरंतर बहते रहो
28-28-15-01-2013    
 हवा,पवन,वायु ,बयार ,पर्यावरण,जीवन , व्यथा,प्रकृति
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

No comments: