Sunday, March 10, 2013

चैन की चाह



चैन की राह तकते
मन में 
चैन की चाह
जन्म कैसे लेती है
किसको चैन में देखा
जो चैन की आशा
मन में जगती है
कहीं पढ़ा सुना
अवश्य हो सकता
कितना भी दौड़ो भागो
मन संतुष्ट नहीं तो
चैन भी
कभी नहीं मिलता
चैन की मरीचिका
परछाइयों को बाहों में
समेटने से
अधिक नहीं होता
जीवन भर परछाई सा
साथ चलता रहता
मिलता किसी को नहीं
चैन की खोज में
मन अवश्य निरंतर
भटकता रहता
19-19-08-01-2013
चैन, मरीचिका, मन ,संतुष्ट
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

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