Friday, March 1, 2013

किसी और से क्यों आशा करूँ



जब
भाग्य ने दिया इतना
जिसकी कभी
आशा भी ना थी
फिर भी आज खुश
क्यों नहीं हूँ
जो निर्णय
मैंने स्वयं किये थे
उन निर्णयों के लिए
किसी और को
क्यों जिम्मेदार कहूं
किसी से
सलाह मांगी होगी
उसकी सलाह भी
मानी होगी
ठीक नहीं निकली
तो उसकी गलती
कैसे मानूं
फिर जिस पथ पर
चल कर आज
यहाँ तक पहुंचा
उस पथ को कैसे दोष दूं
कुछ कमी
मुझ में ही रही होगी
जो आज खुश नहीं हूँ
अगर खुशी ढूंढनी है
तो मुझे ही बदलना होगा
किसी और से
क्यों आशा करूँ
04-04-02-01-2013
भाग्य,खुशी,संतुष्टि,संतुष्ट ,आशा,निराशा
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

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