Saturday, March 2, 2013

बसा कर प्रियतम को ह्रदय में


बसा कर
प्रियतम को ह्रदय में
खोल दिए
प्रतीक्षा के द्वार मन में
पल पल
दिन महीनों और साल
बांधती रही आशाओं के बाँध
निद्रा खोयी चैन खोया
मिला नहीं फिर भी
प्रियतम का साथ
आँखों से अश्रूओं की धारा
अविरल बहती रही
मन रहा सदा उदास
चेहरे की
चमक विदा हो गयी
मन की आस पूरी ना हुयी
जीवन मरण हुआ सामान
निराशा ने जकड लिया
जीवन बन गया शमशान
04-05-02-01-2013
प्रेम,प्रियतम ,मोहब्बत,प्यार ,विरह
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

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