Sunday, March 17, 2013

हाथों की लकीरों को देखता हूँ



हाथों की
लकीरों को देखता हूँ
सोचने लगता हूँ
भाग्य की प्रतीक्षा करूँ
या कर्म से भाग्य बनाऊँ
हाथों की ताकत को
काम में लूं
पर जानता हूँ
बिना कर्म भाग्य भी
साथ नहीं देता
हिम्मत और विवेक हो तो
भाग्य स्वयं बन जाता
सफलता को
कदम चूमने के लिए
बाध्य कर देता
भाग्य पर अत्यधिक
विश्वास रखने के लिए
स्वयं से क्षमा माँगता हूँ
कर्म में जुट जाता हूँ
30-30-15-01-2013
भाग्य,किस्मत,कर्म,विवेक
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

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