Monday, March 18, 2013

ज़माने की हवा कुछ ऐसी चली



ज़माने की हवा
कुछ ऐसी चली
धूप भी डर कर
छाया में रहने लगी
कोई दिन दहाड़े उसका
उजाला ही नहीं लूट ले
उसकी इज्ज़त से
नहीं खेल ले
घबरा कर
मुंह छिपाने लगी
कहीं और जा कर खिलूँ
परमात्मा से
प्रार्थना करने लगी
34-34-17-01-2013
इज्ज़त, इज्ज़त लूटना,बलात्कार,धूप,उजाला 
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

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