Saturday, March 9, 2013

सुबह जब आँख खुली



सुबह जब आँख खुली तो 
सुबह बदली बदली सी लगी
ना सूरज की रश्मियाँ दिखाई दी 
ना कोयल की कूंक 
चिड़ियों की चचहाट सुनायी दी
ना पत्तों पर ओस की बूँदें 
ना कलियों में 
पुष्प बन खिलने की 
आतुरता थी
सोचता समझता कारण 
जानने का प्रयत्न करता 
उसे पहले ही पता चल गया
आज भी अखबार के 
पहले पन्ने पर 
एक नाबालिग से बलात्कार 
फिर ह्त्या की खबर छपी थी
18-18-08-01-2013
नारी,उत्पीडन,स्त्री ,अत्याचार,हत्या,बलात्कार 
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

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