बौने
हैं हम
भाग्य
के मारे हैं हम
पूरे
हो कर भी
अधूरे
हैं हम
बचपन
से बुढापे तक
कोई
नहीं समझता
भावनाओं
को हमारी
ज़िन्दगी
से लेकर
सर्कस
तक हँसी के
पात्र
हैं हम
तिरिस्कार
सहते हैं हम
मन
ही मन घुटते हैं हम
बच्चों
से बूढों तक
सब
को हँसाते हैं हम
जीना
है इसलिए
दिखते
नहीं
आंसू
किसी को हमारे
खून
के आंसू पीते हैं हम
चुपचाप
सहते हैं हम
निरंतर
इश्वर
से प्रार्थना हमारी
किसी
को ना दे ऐसा
नसीब
खुद
रोते हैं दूसरों को
हँसाने
के लिए हम
बौने
हैं हम
17-07-2012
606-03-07-12
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