हम खुद में इतने
पागल हैं
अपनों को दुश्मन
समझते हैं
ज़हर को अमृत समझ
कर पीते हैं
खुशहाली हमको
पसंद नहीं
बदनामी का डर नहीं
खुद के हाथों से खुद
आग लगाते हैं
खुद बेचैन रहते हैं
दूजे का
चैन भी छीनते हैं
ना खुद सो पाते हैं
ना दूजों को सोने देते हैं
हँसती गाती ज़िन्दगी को
आंसूओं
से भर देते हैं
हम खुद में इतने
पागल हैं
31-07-2012
640-37-07-12
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