Tuesday, July 31, 2012

हम खुद में इतने पागल हैं



हम खुद में इतने
पागल हैं
अपनों को दुश्मन
समझते हैं
ज़हर को अमृत समझ
कर पीते हैं
खुशहाली हमको
पसंद नहीं
बदनामी का डर नहीं
खुद के हाथों से खुद
आग लगाते हैं
खुद बेचैन रहते हैं
दूजे का
चैन भी छीनते हैं
ना खुद सो पाते हैं
ना दूजों को सोने देते हैं
हँसती गाती ज़िन्दगी को
आंसूओं से भर देते हैं
हम खुद में इतने
पागल हैं
31-07-2012
640-37-07-12

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