ज़िन्दगी शेर रह गयी
कब फिर ग़ज़ल बनेगी
पता नहीं
उनकी मिजाज पुरसी
होती रहेगी
उन्हें मनाने की कोशिश
निरंतर जारी रहेगी
माफी माँगू,
चाहे पैरों पर गिरूँ
गीत गा कर मनाऊँ ,
या नयी नज़्म सुनाऊँ
उनको चाहा है
उनसे दिल लगाया है
मोहब्बत की खातिर
उनकी हर इच्छा पूरी
करनी पड़ेगी
मेरी मंजिल मुझे
मिल कर रहेगी
06-06-2011
1016-43-06-11
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