Monday, June 20, 2011

हर हसरत पूरी होती नहीं

रात को ओस
दरख्तों पर गिरती
सुबह धूप की गर्मी से
भाप बन उडती 
ज़िन्दगी भी आती
वक़्त की 
गर्मी से जाती ज़रूर
यादें पीछे रह जाती
कुछ आँखें 
नम होती ज़रूर
दिल में मिलने की
खलिश उठती
हर हसरत 
पूरी होती नहीं
कुछ अधूरी रहती 
ज़रूर
निरंतर सब मिलता नहीं
ज़िन्दगी में
कुछ ख्वाईशें दबी
रह जाती ज़रूर
20-06-2011
1073-100-06-11 
(खलिश =कसक,पीड़ा)

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