रात को ओस
दरख्तों पर गिरती
सुबह धूप की गर्मी से
भाप बन उडती
ज़िन्दगी भी आती
वक़्त की
गर्मी से जाती ज़रूर
यादें पीछे रह जाती
कुछ आँखें
नम होती ज़रूर
दिल में मिलने की
खलिश उठती
हर हसरत
पूरी होती नहीं
कुछ अधूरी रहती
ज़रूर
निरंतर सब मिलता नहीं
ज़िन्दगी में
कुछ ख्वाईशें दबी
रह जाती ज़रूर
20-06-2011
1073-100-06-11
(खलिश =कसक,पीड़ा)
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