वक़्त के साथ
सलीके बदल गए
हर चीज़ के मायने
बदल गए
अब बुरे को बुरा मत
कहिए
रिश्वत को सुविधा शुल्क
कहिए
क़त्ल को आम बात
कहिए
गानों में गालियों को
हकीकत कहिए
जेल को दूसरा घर
कहिए
छिट्ठी के जगह ईमेल
भेजिए
नमस्ते की जगह "हाय"
कहिए
बाप को हैलो
माँ को मॉम कहिए
बूढों को निरंतर बोझ
बदतमीजी को हिम्मत
कहिए
हंसना अब मजबूरी
समझिए
22-06-2011
1083-110-06-11
No comments:
Post a Comment