बहुत वीरान लगता है जहाँ
जहाँ तुम थी है सन्नाटा वहाँ
महफ़िल सूनी है साज़ चुप हैं
फूल भी खुशबू से महरूम हैं
निरंतर माहौल
जश्न का रहता था जहाँ
मातम का मंज़र है वहाँ
चेहरा ग़म में डूबा हुआ
आँखों से अश्क बहा रहा
जुदा तुम से क्या हुआ ?
यकीन खुदा से उठ गया
दिल अब लगता नहीं यहाँ
ज़िंदा रहूँ या मर जाऊं
फर्क किसी को पड़ता कहाँ ?
10-06-2011
1026-53-06-11
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