Friday, June 10, 2011

तारों की ओढनी ओढ़े ,चाँद शर्माने लगा

तारों की ओढनी ओढ़े
चाँद शर्माने लगा
उसने आकाश से
छत पर खडी गोरी को
देख लिया
उसकी सुन्दरता देख
हतप्रभ हुआ
मन ही मन लजा गया
निरंतर सौन्दर्य का
पर्याय रहा
आज वर्चस्व टूट गया
गर्व चूर चूर हुआ
समझ नहीं आया
कहाँ जाए ?
कैसे दिल को समझाए ?
मायूसी में
बादलों की पीछे मुंह
छिपा लिया
10-06-2011
1025-52-06-11

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