Saturday, June 11, 2011

दुनिया की बद्दुआओ का डर था

दुनिया की
बद्दुआओ का डर था
लाख छुपाया
मगर छुप ना सका
दुनिया को
मालूम चलना था
निगाहों से
निगाहें मिलाना
कनखियों से
इक दूजे को देखना
निरंतर मुस्करा कर
बात करना
करीब होने का
बहाना ढूंढना
ज़माने को बताने को
काफी था
मोहब्बत का राज़ 
खुलना था  
10-06-2011
1030-57-06-11

No comments: