Sunday, June 26, 2011

मिले फुर्सत तो फ़साने अपने सुनाऊं

मिले फुर्सत तो
फ़साने अपने सुनाऊ
डूबा हूँ उनकी यादों में
कैसे मझधार में उन्हें
छोड़ आऊँ
मिली जब मुसर्रत
ज़िन्दगी में
कैसे उन लम्हों को
भूल जाऊं ?
और कैसे बिताऊँ ?
दिल जल रहा गम में
कैसे उसे ठंडक पहुँचाऊ ?
निरंतर यादें ही सहारा
ज़िन्दगी का
कैसे उन्हें भूल जाऊं ?
26-06-2011
1100-127-06-11
[मुसर्रत=ख़ुशी]
[गम-ऐ-दौरा=गम का वक़्त}

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