Monday, June 27, 2011

उन्हें पता नहीं आज कल नज्में लिखता हूँ

उन्हें पता नहीं
आज कल नज्में
लिखता हूँ
हर नज़्म में  
हाल-ऐ-दिल बयाँ 
करता हूँ 
उनका ज़िक्र करता हूँ
उनके किये हर वादे को
लिखता हूँ
कैसे तोड़ा
दुनिया को बताता हूँ
निरंतर दिल का गुबार
ज़रिये कलम निकालता हूँ
कोई जाकर उन्हें बताए
वो भी
मेरा लिखा पढ़ लें
अहसास
गलतियों का हो जाए
फिर से लौट जाएँ
कम से कम अब तो
वादा निभा ले
27-06-2011
1106-133-06-11

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