Tuesday, February 15, 2011

एक दिन सबको जाना होता,मिट्टी में मिलना होता


258—02-11

सूखे वृक्ष का ठूंठ

आज अकेला खडा था

हरे वृक्षों के बीच

श्रृंगार रहित
अजनबी लग रहा
अपने रूप
से चिंतित ना था
कभी वो भी हरा
,पत्तों से भरा
पंछियों का बसेरा था

कई सावन
,बसंत देखे
मौसम पतझड़ के झेले
कई अकाल देखे उसने
ना
कभी खुशी से पागल
ना कभी व्यथित हुआ

जानता था हर वृक्ष को सब
देखना पड़ता
निरंतर मौसम से लड़ना होता

जीवित अपने को रखना होता
बहुत कुछ सहना होता
समय गुजरना होता

आज सूख गया
कुल्हाड़ी की प्रक्तीक्षा कर रहा
कोई आयेगा
,उसे काटेगा
फिर जलाएगा
,राख बनाएगा
मिट्टी
में मिलाएगा
कदापि
चिंतित ना था
जानता था
समय सबका पूरा होता
एक दिन सबको जाना होता
मिट्टी में मिलना होता
पुराने का अंत होता
नए का प्रारम्भ होता
15-02-2011  

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