Wednesday, February 23, 2011

अब अश्क बहते नहीं,कोई कुछ कहे तकलीफ होती नहीं

अब
अश्क बहते नहीं
कोई कुछ कहे तकलीफ
होती नहीं
ग़मों से दोस्ती हो गयी
निरंतर सहने की आदत
 हो गयी
जीना अब मजबूरी हो गयी
रात कट तो जाती पर
गुजरती नहीं
बहारें भी खिजा सी लगती
फूलों से महक आती नहीं
जुदाई उनकी बर्दाश्त
होती नहीं
बिना उनके,किसी से कोई
मतलब नहीं
कोई हँसे या रोए असर
होता नहीं
वो ना मिले जब तक
जियूं या मरूं फर्क
पड़ता नहीं
23-02-2011 
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर

7 comments:

परावाणी : Aravind Pandey: said...

परावाणी : Aravind Pandey: ने कहा…

bahut sundar

२५ फरवरी २०११ ८:५९ अपराह्न

शिव शंकर said...

शिव शंकर ने कहा…

बहुत ही सुंदर रचना ,आभार

२५ फरवरी २०११ ४:४४ अपराह्न

Mithilesh dubey said...

Mithilesh dubey ने कहा…

sundar rchnaa aabhar.

२४ फरवरी २०११ ९:४६ अपराह्न

nilesh mathur said...

nilesh mathur ने कहा…

बहुत सुन्दर!
२३ फरवरी २०११ १०:४२ अपराह्न

JAGDISH BALI said...

JAGDISH BALI ने कहा…

दुखांत व रुहानी पंक्यियां ! ग़म इन्सान को ऐसा ही बना देता है !
२३ फरवरी २०११ ८:५२ अपराह्न

Sunil Kumar said...

Sunil Kumar ने कहा…

जियूं या मरूं फर्क
पड़ता नहीं
फर्क तो हमें पड़ेगा आपकी सुन्दर रचनाओं से वंचित हो जायेंगे..
२३ फरवरी २०११ ७:०४ अपराह्न

Shahabuddin Ansari said...

Shahabuddin Ansari ने कहा…

Laazwab sir,keep writing like this
२३ फरवरी २०११ ४:४६ अपराह्न