Thursday, February 24, 2011

निरंतर चल रही कलम को तोड़ देंगे, मेरी आवाज़ मुझ से छीन लेंगे


Udaipur
318—02-11 

देखता हूँ
सब मगर कुछ कहता नहीं
सहता हूँ
सब मगर बोलता नहीं
रोता हूँ
पर अश्क बहाता नहीं
इश्क करता हूँ
पर ज़ाहिर करता नहीं
जुबान को खामोश रखता हूँ
बात अपनी
कलम से कहता हूँ
ज़माने से डरता हूँ
लोग अफ़साना बनाएँगे
शहर में इश्तहार लगवाएंगे
खामोश सदा को
शोर में बदल देंगे
निरंतर चल रही कलम को
तोड़ देंगे
मेरी आवाज़ मुझ से
छीन लेंगे
24-02-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर

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