Friday, February 18, 2011

चुप रहते हो,कुछ ना कहते हो

274—02-11


चुप रहते हो
कुछ ना कहते हो
ग़मों को ढ़ोते हो
उफ़ ना करते हो
हँसते दिखते हो
मन में रोते हो
बेचैन रहते हो
रात भर जागते हो
खामोशी से सहते हो
शिकवा,
 शिकायत कभी
ना करते हो
मोहब्बत करते हो
मुंह से ना कहते हो 
दुनिया से डरते हो
अब सच बता दो
दिल की बात
जुबां से निकालो
निरंतर जल रही
आग को बुझा दो
18-02-2011

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