Thursday, February 24, 2011

क्या कशमकश तुम्हारे जहन में?क्या छुपा रखा अपने दिल में?


316—02-11

क्या कशम कश
तुम्हारे जहन में?
क्या छुपा रखा अपने दिल में?
क्या अटका बंद लबों  में?
क्यूं खुल कर बताते नहीं
हमराज़ किसी को बनाते नहीं
चेहरा मुरझा गया,
नूर उसका कम हुआ
लगता है ,साजों में सुर नहीं
आग में गर्मी नहीं
बेरंग लब्जों की नज़्म हो गए  
निरंतर ख्यालों के
बोझ में दब गए
अब बोझ अपना उतारो
गुबार दिल का निकालो
लब्जों से नहीं तो
कलम से लिख दो
हमें हमराज़ अपना बना लो
नूर चेहरे पर वापस ला दो
मायूसी हमारी दूर कर दो
24-02-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर

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