Tuesday, February 15, 2011

कभी हमारा भी ज़माना था,हर जगह चर्चा हमारा था

257—02-11

कभी हमारा भी ज़माना था
हर जगह चर्चा हमारा था

मिजाज़ आशिकाना था
हमारा भी कोई सहारा था

एक आशियाना हमारा था
खुशियों से महकता था

आवाज़ से चहकता था
लोगों का आना जाना था

हंसी से गूंजता था
सुबह शाम का पता ना था

अब सब खामोश है
इंतज़ार जाने का है

वक़्त यादों में खोने का है
निरंतर चुपचाप सहने का है

चुप रह कर सुनने का है
आंसूं बहा देखने का है

दुआ खुदा से करने का है
किसी तरह वक़्त काटने का है
15-02-2011

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