Saturday, February 19, 2011

बचपन की होली कभी ना भूलती,हर होली पर याद आती

283—02-11

मैं भी 
होली खेलता था
कई दिन इंतज़ार करता
दोस्तों में चर्चा होती
कैसे खेलेंगे,किसे कितना रंगेंगे
रणनीती बनती
चंदे के लिए घर घर टोलियाँ
घूमती
पेड़ों की डालियाँ चोरी से
काटी जाती
पकडे जाने पर फजीहत होती
होली आती,स्कूल की छुट्टी होती
दिल में अजीब सी मस्ती होती
होली पूजी जाती,फिर जलायी जाती
रंगों की बरसात शुरू होती
थाली पकवान से भरी होती
मोहल्ले के लोगों को
खट्टी मीठी उपाधी दी जाती
रात मुश्किल से कटती
सुबह होते ही दोस्तों की
टोली बनती
गली मोहल्ले घूमती,
कभी नाचती कभी गाती
रंगों से चेहरों को छुपाती
सब एक दूजे को देख,हँसते
किस का रंग
कितने दिनों में उतरेगा
इस पर बहस होती
होली समाप्त होती
पर चर्चा कई दिन चलती
बचपन की होली कभी
ना भूलती
हर होली पर याद आती
दिल को निरंतर रोमांचित
करती
19-02-2011

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