Monday, February 28, 2011

ज़मीं पर नहीं,ज़न्नत में बसते हैं,राज़ अब भी दिल पर करते हैं



328--02-11
कदम खुद-ब-खुद रुक जाते
उनकी गली से जब गुजरता
बीते लम्हे निरंतर लौटते
हवा में खुशबू उनकी आती
आवाज़ सुनायी देती
अहसास करीब होने का देती
उनके घर को जब देखता
अनजाने कदम उस तरफ बढाता
इंतज़ार दरवाज़ा खुलने का करता
दरवाज़ा खुलता
किसी और को खड़े देखता
ख्याल दम तोड़ते,याद मुझे दिलाते
ज़मीं पर नहीं,ज़न्नत में बसते हैं
राज़ अब भी दिल पर करते हैं
28-02-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर

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