306—02-11
निरंतर
पैगाम उनका मिलता
मिलने का वादा होता
कल ना मिलने का
माफी नामा साथ होता
दिन गुजारता,
उनका आना ना होता
वक़्त रात का
मुश्किल से गुजरता
कल मिलने की उम्मीद में
सोता
सवेरा होता ,
फिर पैगाम उनका आता
मिलने का वादा होता
दिन भर उन के आने की
उम्मीद करता
रोज़ सोचता
उम्मीद भी क्या चीज़ है
उम्मीद में मरते मरते भी
इंसान जी जीता
जीते जी उम्मीद में
मर मर कर जीता
22-02-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
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