Monday, February 21, 2011

निरंतर डगमगा रही किश्ती को किनारा दिखता

296—02-11

तसव्वुर में
तुम्हारे आगोश में होता
खुमार
ख्यालों में महसूस होता
खुद को
ज़न्नत का फ़रिश्ता समझता
दिल
मोहब्बत से लबालब होता
हसरतों को
मुकाम मिल गया लगता
निरंतर
डगमगा रही किश्ती को
किनारा दिखता
हसरतों को
मुकाम मिल गया लगता
खुदा की
इबादत का नतीजा मिल गया
लगता
21-02-2011
डा.राजेंद्र तेला,."निरंतर"
तसव्वुर =कल्पना ,इबादत =पूजा

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