Sunday, February 27, 2011

बहुत गुमाँ था,हमें खुद पर


Ankleshwar
324—02-11


बहुत गुमाँ था,हमें खुद पर
हुस्न से हमारा दिल बेअसर
तुम्हारी इक निगाह ने 
हमें लूट लिया
तीर-ऐ-नज़र से हमें मार दिया
उड़ते पंछी को
पिंजरे में बाँध दिया
अब ज़माने से बेखबर
दिल तुम में खोया रहता
बेसब्र,ज़िन्दगी को जिया जाता
निरंतर ख्वाब तुम्हारे देखता
कब क़ैद से छूटेगा,
 आकाश में साथ तुम्हारे उड़ेगा
सुबह-ओ-शाम यही सोचता

27-02-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर

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