Saturday, February 19, 2011

क्या कवी,गेंदबाज़,बल्लेबाज़,क्षेत्र रक्षक,दर्शक सोचता, खेल जब क्रीकेट का होता


284—02-11
कवी,पाठकों से
निरंतर
मन में ख्याल आता
क्या गेंदबाज़,बल्लेबाज़,
क्षेत्र रक्षक,दर्शक सोचता
खेल जब क्रीकेट का होता
क्या मन में 
खुद से कहता
अपनी कलम से बात
उनके दिल की लिखी 
बात सच्ची या झूंठी
उन के दिल में छुपी
बल्लेबाज़,गेंदबाज़ से
मारूंगा चौका,मारूंगा छक्का
गेंद को सीमा पार
पहुंचाऊंगा
रन भाग भाग कर
भी लूंगा
तुझे सताऊंगा
हर गेंद को पूरी ताकत
से मारूंगा
अपने टीम को जिताऊंगा
गेंदबाज़,बल्लेबाज़ से
आ सामने आ
डरता डरता मैदान में आ
गेंद से खुद को बचा
विकेट को मुझ से छुपा
खेलने ना दूंगा
रफ़्तार से दहशत 
फैलाऊंगा
स्पिन से तुझे 
भरमाऊँगा
आऊट तुझे करूंगा
अपनी टीम को जिताऊंगा
क्षेत्ररक्षक,बल्लेबाज़ से
गेंद कहीं भी मार
उसे पकड़ लूंगा
गेंद को सीमा तक
जाने ना दूंगा
रन लेगा,रन आऊट
कर दूंगा
गेंद उछालेगा
कैच आऊट कर दूंगा
अपनी टीम को जिताऊंगा
दर्शक,बल्लेबाज़ से
मार दे चौका मार दे
छक्का
गेंद को सीमा पार
पहुंचा दे
गेंदबाज़  का दिल
तोड़ दे
रनों का अम्बार लगा दे
अपनी टीम को जीता दे
दर्शक,गेंदबाज़ से
गेंद ऐसे ड़ाल दे
विकेट को उखाड़ दे
बल्लेबाज़ को टिकने ना दे
हर गेंद पर विकेट ले
अपनी टीम को जीता दे
 19-02-2011

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