Friday, February 18, 2011

लोग खुद से विश्वाश खो चुके,अब किसी पर विश्वाश नहीं करते

275—02-11

पेड़ों की पत्तियाँ
झडती नयी कोपलें निकलती
सब खुश होते
पेड़ में बदलाव को स्वीकार
करते
घर की दीवारें गंदी होती
टूटती फूटती
उनकी मरम्मत होती
नए रंग से रंगी जाती 
सब खुश होते 
बदलाव को स्वीकार करते
चूल्हे पर चढ़ कर
कढाई काली होती मांजी जाती
सब खुश होते
बदलाव को स्वीकार करते
कई बार असफल हुआ
मेहनत से सफल हुआ
लोग बदलाव को स्वीकार
नहीं करते 
निरंतर क्रोध घ्रणा को
दूर करता
शब्दों को सोच कर बोलता
बदलने की  कोशिश करता
लोग विश्वाश नहीं करते
बदलाव को स्वीकार
नहीं करते
लोग खुद से विश्वाश
खो चुके
अब किसी पर विश्वाश
नहीं करते
ना बदलते
ना किसी इंसान में
बदलाव की उम्मीद करते
कोई बदलना भी चाहे,तो
पीछे धकेलते
बदलाव को स्वीकार
नहीं करते
हर शख्श को
खुद जैसा देखना चाहते
18-02-2011

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