Saturday, February 19, 2011

हर दिन,हर शख्श,हर मजहब,दिल से होली मनाए

277—02-11

होली आती
सवाल मन में पैदा करती
क्यों पेड़ों की कटाई होती
क्यों डालियाँ जलाई जाती
निरंतर बाँझ हो रही धरती
की क्यों हंसी उडाई जाती
प्यार भाई चारे की मिसाल
मानी जाती
मगर रंगों में मिलावट होती
जबरदस्ती चन्दा उगाही
की जाती
ज़िन्दगी बदरंग पर
होली रंगों से खेली जाती
भांग ,शराब खूब चढ़ाई जाती
नशे को तरजीह दी जाती
नहीं खेले तो,
जबरदस्ती खिलाई जाती
खूब मार पिटाई होती
दीवारें गंदी करी जाती
अश्लीलत़ा खुल कर दिखाई जाती
क्यों ना रीत बदल दें
बिना पेड़ काटे
होली जलाएँ
निरंतर रंग जीवन में भर दें
ना दीवारें गंदी हों
ना ज़बरदस्ती हो
होली की कोई तिथी तारीख ना हो  
हर दिन,हर शख्श,हर मजहब
दिल से होली मनाए

नए रंगों से उसे सजाएँ
19-02-2011

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