कहां तो सोचा था
फितरत तुम्हारी बदल गयी
पता ना था
तुम भी खामोशी से
बर्दाश्त कर रहीं
मन ही मन तुम भी रो रहीं
छुप छुप कर दुआ कर रहीं
दिल की आग को
किसी तरह भड़कने से
रोक रहीं
दिल को काबू में कर रहीं
मैं भी हालात से मजबूर हूँ,
जला कर राख ना कर दे
निरंतर उस मंजर से डरता हूँ
इस लिए ज़रिए कलम
हाल-ऐ-दिल बयाँ करता हूँ
खिजा में बहारें ढूंढता हूँ
सुकून की ख्वाइश रखता हूँ
फितरत तुम्हारी बदल गयी
पता ना था
तुम भी खामोशी से
बर्दाश्त कर रहीं
मन ही मन तुम भी रो रहीं
छुप छुप कर दुआ कर रहीं
दिल की आग को
किसी तरह भड़कने से
रोक रहीं
दिल को काबू में कर रहीं
मैं भी हालात से मजबूर हूँ,
जला कर राख ना कर दे
निरंतर उस मंजर से डरता हूँ
इस लिए ज़रिए कलम
हाल-ऐ-दिल बयाँ करता हूँ
खिजा में बहारें ढूंढता हूँ
सुकून की ख्वाइश रखता हूँ
24-03-03
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
492—162-03-11
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