Wednesday, March 30, 2011

अब अजनबी समझते

अब अजनबी समझते
देख कर निगाहें फिराते
रास्ते में मिलते
बगल से निकल जाते
वो भी ज़माना था
जब निगाहों से निगाहें
मिलाते
उठना चाहता,उठने
ना देते
घंटों,ऊँगलियाँ बालों में
फिराते
निरंतर वादे साथ जीने,
मरने के करते
जब से रुस्वां हुए,
बदल गए
खामोशी से जान लेते
बिना मारे ही ज़ख्म देते
30-03-03
549—219-03-11

No comments: