अब अजनबी समझते
अब अजनबी समझते
देख कर निगाहें फिराते
रास्ते में मिलते
बगल से निकल जाते
वो भी ज़माना था
जब निगाहों से निगाहें
मिलाते
उठना चाहता,उठने
ना देते
घंटों,ऊँगलियाँ बालों में
फिराते
निरंतर वादे साथ जीने,
मरने के करते
जब से रुस्वां हुए,
बदल गए
खामोशी से जान लेते
बिना मारे ही ज़ख्म देते
30-03-03
549—219-03-11
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