थोड़ा सा
बहम रखता हूँ
लोगों की
नज़रों से डरता हूँ
मुस्कराते चेहरों से
खौफ खाता हूँ
अब दिन में भी
डरता हूँ
चांदनी झुलसाती
मुझे
ठंडी हवा
लू सी लगती मुझे
जब अपने दुश्मन
समझते मुझे
किसी पर यकीन
कैसे करूँ ?
निरंतर पीठ पर
खंजर खाए
सीना
कैसे खुला रखूँ
अब चुप रहता हूँ
चुपचाप सहता हूँ
29-03-03
548—218-03-11
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