सूरज की गर्मी है
आज कुछ कम
ताज़ा ठंडक ने किया
उसको भी नम्र
फूल भी कुछ ज्यादा
महक रहे
आज इक नया
अहसास दे रहे
कौन हूँ?
कोई पूँछ रहा
खुद को जानने का
मौक़ा मिल रहा
कोई मुझे अक्स
दिखा रहा
अपने को छिपा रहा
मगर ये भूल रहा
खुशबू छोड़ कर जा रहा
महक से निरंतर
पहचाना जाएगा
भीड़ में भी
ना छुप पाएगा
25-03-03
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
507—177-03-11
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