अच्छा हुआ
अब बात नहीं करते
जैसा सोचा वैसा ही करते
निरंतर हंसी ठिठोली करता
सब के सामने अपनापन
दिखाता
दिल की बातें उनसे कहता
इरादे नापाक मेरे
ऐसा अहसास देता
कोई उंगली उठाए रिश्तों पर
इंतज़ार उसका करता
अब कामयाब हो गया
उन्होंने मुंह फिरा लिया
बात करना अब बंद
कर दिया
अपनी नज़रों से गिरा दिया
अब कोई ऊंगली ना
उठाएगा
वजूद जिसका नहीं
उस रिश्ते से ना जोड़ेगा
बोझ दिल का उनके
कम किया
चाहत के खातिर काम
ऐसा किया
इसी में सुकून हासिल
किया
20-03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
458—128-03-11
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