Wednesday, March 23, 2011

बस में नहीं मेरे कि,तुम मुझे भाते हो


बस में नहीं मेरे कि
तुम मुझे भाते हो
शिकायत खुदा से करो
गर तुम नहीं चाहते हो 
करिश्मा खुदा का हो
अपने हाथों से 
तराशा तुम्हें उसने 
कैसे उसे नाराज़ करूँ?
निरंतर
हुक्म खुदा का माना
कैसे हुक्म उदूली करूँ?
खुदा के बन्दे से
मोहब्बत कैसे ना करूँ?
इतना
नापाक भी नहीं हूँ
कि इतनी
गिला रखो मुझ से
मान कर
फरमान खुदा का
तुम भी
मोहब्बत कर लो
मुझसे
23-03-03
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
485—155-03-11


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