Friday, March 25, 2011

किसी को मारा भी या नहीं,फिर भी कातिल करार दे दिया





किसी ने किसी के
बारे में कुछ कहा
हमने चित्र उस का मन में
बना लिया
किसी ने फिर कुछ कहा
चित्र को पुख्ता कर लिया
कहीं अखबार में कुछ पढ़ लिया
कभी टीवी पर कुछ देख लिया
मानस पूरा तय कर लिया
कोई चित्र के विपरीत कहे
ना मानने का
फैसला कर लिया
बिना जाने,बिना मिले ही
कठघरे में खडा कर दिया
किसी को मारा भी या नहीं
फिर भी कातिल करार दे दिया
मुकदमा चला नहीं
और फैसला दे दिया
कभी नहीं सोचा
क्यों किसने किसी के
 बारे में कुछ कहा ?
क्या वो भी शिकार किसी के

कहने का हुआ ? 
निरंतर क्यों ऐसा होता?
गहराई से सोचो उसको
सुनो सब की,बहो ना उसमें
अपना मानस खुद बनाओ
जिसने करा नहीं 
उसे सज़ा ना दो
हमारे साथ जब ऐसा होता
क्यों मन हमारा क्रंदन करता ?
25-03-03
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
501—171-03-11

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