सात दिन हो गए
इंतज़ार करते करते
ख़त का
जवाब नहीं आया
धीरे धीरे उनसे मिलना
दिल के कोने में
दब गया
निरंतर यूँ ही होता था
मुलाक़ात होती
बात शुरू होती
ठंडी हवा का झोंका
आता
कुछ दिन दिल में
ठंडक पैदा करता
फिर खामोश हो जाता
एक और अफ़साना
दिल में ज़ज्ब होता
हमेशा की तरह
फिर चौराहे पर खडा
रह जाता
किस्मत समझ
हालात को मंजूर
करता
नयी मुलाक़ात का
इंतज़ार करता
27-03-03
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
523—193-03-11
No comments:
Post a Comment