Tuesday, March 22, 2011

जीविकोपार्जन के लिए,कब तक ये सब करना पडेगा



आज फिर
परमात्मा से प्रार्थना
करते करते
बेमन से काम पर 
निकला
वीभत्स,विकृत,
दुर्घटना में क्षत विक्षत,
बूढ़े, जवान ,मासूम
असमय काल कवलित
चेहरों को
नहीं देखना पड़े
ऐसा कुछ कर दे
चाक़ू से बेतरतीब
कटे हुए जिस्मों को
मोटे सुए से
फिर किसी शव को
बोरी सा नहीं सिलना पड़े
मौत का कारण जानने
के लिए
उनके अवशेषों को
बोतलों में भरते भरते
जीवन से विमुख हो गया
जमे हुए काले पड़े हुए
खून से सने कमरे को
साफ़ करते करते थक गया
कातिल नहीं था
मगर ये सब करते,करते
खुद को
कातिल समझने लगा
जीना दुश्वार लगने लगा
खुद से भी नफरत
होने लगी
नहीं जानता ,
जीविकोपार्जन के लिए
 कब तक ये सब करना
पडेगा
उसके पास कोई और
चारा ना था
मुर्दा घर में सफाई
कर्मचारी था
पोस्ट मार्टम करवाता था
जीने के लिए
निरंतर मरे हुओं को
 मारता था
22-03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
470—140-03-11

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