हम वफ़ा से जीते
वो गिले फिर भी रखते
हम चुपचाप सहते,
खून का घूँट पीते रहते
फासले और ना बढें ,
कोशिश करते रहते
निरंतर हिचकोले
खाते रहते
साहिल को
किनारा मिल जाए
किश्ती मंझधार में
ना डूबे
दुआ खुदा से करते
रहते
किसी तरह खुद को
सम्हाले रखते
24-03-03
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
491—161-03-11
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