जानता हूँ
क्या करना मुझे
अच्छा बुरा सब पता मुझे
व्यस्तता में कर नहीं प़ता
निरंतर सोचता,
कल से करूंगा
जुबान से कल भी बदल
जाऊंगा
मगर फितरत अपनी
नहीं बदलूंगा
जज्बा भी वही रखूंगा
भूल जाता ,
नतीजा भी वही होगा
कल भी रोता था
कल भी रोऊँगा
अब ठान लिया,जज्बा
बदलना है
कल नहीं आज से
प्रारम्भ करना है
आज से हसूंगा
कल का इंतज़ार
फिर ना करूंगा
25-03-03
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
505—175-03-11
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