मिलने से पहले ही
बिछड़ गए
ना जाने क्या समझ गए
हमने तो हाल-ऐ-दिल
सुनाया था
रोने के लिए कंधा
माँगा था
वो कंधे को
दिल समझ बैठे
हमें वो भी
गलत समझ बैठे
हर बार
ऐसा ही होता था
दर्द-ऐ-दिल
कम करने की चाहत में
ग़मों का बोझ निरंतर
बढ़ जाता
26-03-03
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
516—18603-11
No comments:
Post a Comment